Best Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit | Slokas of bhagavad gita

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Best Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit & Hindi with image | Slokas of bhagavad gita (श्रीमद भगवद गीता के प्रसिद्ध श्लोक)


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)

कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है, फलों में कभी नहीं।
अतः तू कर्मफलका हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यतामें भी आसक्ति न हो

Karmanyewadhikaraste ma phaleshu kadachan-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
Karmanyewadhikaraste ma phaleshu kadachan-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो…
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)

अगर युद्ध में तू मारा जायगा तो तुझे स्वर्गकी प्राप्ति होगी
और अगर युद्ध में तू जीत जायगा तो पृथ्वी का राज्य भोगेगा।
अतः हे कुन्तीनन्दन! तू युद्ध के लिये निश्चय कर के खड़ा हो जा।

hato wa prapyasi swargam-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
hato wa prapyasi swargam-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्‌।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः॥

जो मनुष्य इसी लोक में शरीर त्यागने के पूर्व ही
काम और क्रोध से उत्पन्न हुए वेग को सहन करने में समर्थ है,
वह योगी (युक्त) और सुखी मनुष्य है।

shaknotihaiw yah sodhun praksharirvimokshanat-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
shaknotihaiw yah sodhun praksharirvimokshanat-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्‍क्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥

जो न हर्षित होता है और न द्वेष करता है;
न शोक करता है और न आकांक्षा; तथा
जो शुभ और अशुभ को त्याग देता है,
वह भक्तिमान् पुरुष मुझे प्रिय है।

yo n hrishyati n dweshti n shochati n kankshati-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
yo n hrishyati n dweshti n shochati n kankshati-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)

विषयों का चिन्तन करने वाले मनुष्यकी उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है।
आसक्ति से कामना पैदा होती है। कामना से क्रोध पैदा होता है।
क्रोध होने पर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोह से स्मृति भ्रष्ट हो जाती है।
स्मृति भ्रष्ट होने पर बुद्धिका नाश हो जाता है।
बुद्धिका नाश होने पर मनुष्य का पतन हो जाता है।

dhyayato vishayanpunsah sangsteshupajayate-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
dhyayato vishayanpunsah sangsteshupajayate-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)

क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति विभ्रम।
स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है
और बुद्धि के नाश होने से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है।।

krodhabhdawati sammohah samohatsmritivibhramah-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
krodhabhdawati sammohah samohatsmritivibhramah-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥

कोई भी पुरुष कभी क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता
क्योंकि प्रकृति से उत्पन्न गुणों के द्वारा अवश हुए
सब (पुरुषों) से कर्म करवा लिया जाता है।

n hi kashchitkshanmapi jaatu tishthatyakarmakrit-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
n hi kashchitkshanmapi jaatu tishthatyakarmakrit-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन ।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते ॥

हे मधुसूदन ! इनके मुझे मारने पर अथवा
त्रैलोक्य के राज्य के लिये भी मैं इनको मारना नहीं चाहता,
फिर पृथ्वी के लिए कहना ही क्या है।

etann hantumichchhami dhyatopi madhusudan-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
etann hantumichchhami dhyatopi madhusudan-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)

श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करता है,
दूसरे मनुष्य वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं।
वह जो कुछ प्रमाण देता है, दूसरे मनुष्य उसीके अनुसार आचरण करते हैं।

yaddhadacharati shreshthastattadevetaro janah-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
yaddhadacharati shreshthastattadevetaro janah-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।
अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌॥

हे महात्मन् ! ब्रह्मा के भी आदि कर्ता और सबसे श्रेष्ठ
आपके लिए वे कैसे नमस्कार नहीं करें? (क्योंकि)
हे अनन्त! हे देवेश! हे जगन्निवास! जो सत् असत् और
इन दोनों से परे अक्षरतत्त्व है, वह आप ही हैं।

kasmachch te n nameranmahatman gariy se-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad
kasmachch te n nameranmahatman gariy se-Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit bhagavad

कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्‌।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥

जो मूढ बुद्धि पुरुष कर्मेन्द्रियों का निग्रह कर
इन्द्रियों के भोगों का मन से स्मरण (चिन्तन) करता रहता है
वह मिथ्याचारी (दम्भी) कहा जाता है।

karmendriyani sanyamy y aaste mansa smaran-slokas of bhagavad gita in hindi
karmendriyani sanyamy y aaste mansa smaran-slokas of bhagavad gita in hindi

यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्‌।
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते॥

जो मुझे अजन्मा, अनादि और लोकों के महान् ईश्वर के रूप में
जानता है, र्मत्य मनुष्यों में ऐसा संमोहरहित (ज्ञानी)
पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाता है।

yo mamajmanadin ch weti lokamaheshwaram-slokas of bhagavad gita in hindi
yo mamajmanadin ch weti lokamaheshwaram-slokas of bhagavad gita in hindi

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)

इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते
और न अग्नि इसे जला सकती है ;
जल इसे गीला नहीं कर सकता
और वायु इसे सुखा नहीं सकती।।

nainm chhidranti shastrani nainm dahti pawakah-slokas of bhagavad gita in hindi
nainm chhidranti shastrani nainm dahti pawakah-slokas of bhagavad gita in hindi

न कर्मणामनारंभान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति॥

कर्मों के न करने से मनुष्य नैर्ष्कम्य को प्राप्त नहीं होता
और न कर्मों के संन्यास से ही वह सिद्धि (पूर्णत्व) प्राप्त करता है।

n karmnamanarambhannaishkarmyam purushoshrute-slokas of bhagavad gita in hindi
n karmnamanarambhannaishkarmyam purushoshrute-slokas of bhagavad gita in hindi

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञित ॥

श्रीभगवान् ने कहा — परम अक्षर (अविनाशी) तत्त्व ब्रह्म है;
स्वभाव (अपना स्वरूप) अध्यात्म कहा जाता है;
भूतों के भावों को उत्पन्न करने वाला विसर्ग
(यज्ञ, प्रेरक बल) कर्म नाम से जाना जाता है।

aksharam brahm paramm sawbhawo dhyatmamuchyate-slokas of bhagavad gita in hindi
aksharam brahm paramm sawbhawo dhyatmamuchyate-slokas of bhagavad gita in hindi

तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ॥

दु:ख के संयोग से वियोग है, उसीको ‘योग’ नामसे जानना चाहिये ।
(वह योग जिस ध्यानयोग लक्ष्य है,) उस ध्यानयोका अभ्यास न उकताये हुए
चित्तसे निश्चयपूर्वक करना चाहिये।

tm viddhad dukhsanyogviyogm yogsanjitm-slokas of bhagavad gita in hindi
tm viddhad dukhsanyogviyogm yogsanjitm-slokas of bhagavad gita in hindi

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)

हे भरतवंशी अर्जुन! जब-जब धर्मकी हानि
और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही
मैं अपने-आपको साकार रूप से प्रकट करता हूँ।

yada yada hi dharmsy glanirbhawati bharatah-slokas of bhagavad gita in hindi
yada yada hi dharmsy glanirbhawati bharatah-slokas of bhagavad gita in hindi

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)

साधु पुरुषों के रक्षण, दुष्कृत्य करने वालों के नाश,
तथा धर्म संस्थापना के लिये, मैं प्रत्येक युग में प्रगट होता हूँ।।

paritranay sadhunam vinashay ch dushkritam-slokas of bhagavad gita in hindi
paritranay sadhunam vinashay ch dushkritam-slokas of bhagavad gita in hindi

यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥

परन्तु जो मनुष्य आत्मा में ही रमने वाला
आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो
उसके लिये कोई कर्तव्य नहीं रहता।

yastwatmaratirew syadatmatriptashch manawah-slokas of bhagavad gita in hindi
yastwatmaratirew syadatmatriptashch manawah-slokas of bhagavad gita in hindi

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥

और जो कोई पुरुष अन्तकाल में मुझे ही स्मरण करता हुआ
शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है,
इसमें कुछ भी संशय नहीं।

antkaale ch mamev samaranmuktva kalevaram-slokas of bhagavad gita in hindi
antkaale ch mamev samaranmuktva kalevaram-slokas of bhagavad gita in hindi

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत॥

जब इस देह के द्वारों अर्थात् समस्त इन्द्रियों में
ज्ञानरूप प्रकाश उत्पन्न होता है,
तब सत्त्वगुण को प्रवृद्ध हुआ जानो।

sarwadwareshu dehesminprakash upajayte-slokas of bhagavad gita in hindi
sarwadwareshu dehesminprakash upajayte-slokas of bhagavad gita in hindi

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)

श्रद्धावान्, तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है।
ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है।।

shradhdawanllabhate gyanm tatparah sanyatendriyah-slokas of bhagavad gita in hindi
shradhdawanllabhate gyanm tatparah sanyatendriyah-slokas of bhagavad gita in hindi

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
(अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)

सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ,
मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो।।

sarvdharmanparityajya mamkan sharanm-slokas of bhagavad gita in hindi
sarvdharmanparityajya mamkan sharanm-slokas of bhagavad gita in hindi

कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्‌।
रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्‌॥

शुभ कर्म का फल सात्विक और निर्मल कहा गया है;
रजोगुण का फल दु;ख और तमोगुण का फल अज्ञान है।

karmanah sukritasyahuah satvikam nirmalm-slokas of bhagavad gita in hindi
karmanah sukritasyahuah satvikam nirmalm-slokas of bhagavad gita in hindi

मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः सा उच्यते॥

जो मान और अपमान में सम है;
शत्रु और मित्र के पक्ष में भी सम है,
ऐसा सर्वारम्भ परित्यागी पुरुष गुणातीत कहा जाता है।

manapamanyostulyastulyo mitraripakshayoh-slokas of bhagavad gita in hindi
manapamanyostulyastulyo mitraripakshayoh-slokas of bhagavad gita in hindi

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥

दुर्बुद्धि धार्तराष्ट्र (दुर्योधन) का युद्ध में प्रिय चाहने वाले
जो ये राजा लोग यहाँ एकत्र हुए हैं,
उन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा।

yotsyamananvekshehm y eteatra samagtah-slokas of bhagavad gita in hindi
yotsyamananvekshehm y eteatra samagtah-slokas of bhagavad gita in hindi

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:॥
(षष्ठ अध्याय, श्लोक 5)

अपने द्वारा अपना उद्धार करे, अपना पतन न करे;
क्योंकि आप ही अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है।

udhdaredatmanatmanm natmanmavsadayet-slokas of bhagavad gita in hindi
udhdaredatmanatmanm natmanmavsadayet-slokas of bhagavad gita in hindi

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:॥

जो कोई भी भक्त मेरे लिए पत्र, पुष्प, फल, जल आदि भक्ति से अर्पण करता है,
उस शुद्ध मन के भक्त का वह भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ (पत्र पुष्पादि) मैं भोगता हूँ
अर्थात् स्वीकार करता हूँ

patram pushpm toym yo me bhaktya prayachchhati-slokas of bhagavad gita in hindi
patram pushpm toym yo me bhaktya prayachchhati-slokas of bhagavad gita in hindi

यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य: ।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय:॥
(द्वादश अध्याय, श्लोक 15)

जिससे किसी प्राणी को उद्वेग नहीं होता और
जिसको खुद भी किसी प्राणी से उद्वेग नहीं होता तथा
जो हर्ष, अमर्ष (ईर्ष्या), भय और उद्वेगसे रहित है, वह मुझे प्रिय है।

yasmannodwijate loko lokonnodwijate-slokas of bhagavad gita in hindi
yasmannodwijate loko lokonnodwijate-slokas of bhagavad gita in hindi

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